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Sunday 1 July 2018

गजल


हमने जिंदगी–जहर को खूब जम के पिया है,
कांटे–तूफानों में भी हँस–हँस के जिया है।
                                तेरी तो आदत ही पड़ गयी है फेंकने की पत्थर,
                                उसे भी हमने गले से लगाया, फूलों–सा लिया है।
तेरी मधुर बातों में भी छुपा है खतरनाक खंजर, 
नाहक ही तुमने इश्क औ’ ईमान को बदनाम किया है।
                              जब–जब तुमने पायी है जिंदगी जीने को रोशनी,
                              तब–तब तुमने औरों के बास्ते बस अंधकार दिया है।
कैसे जिये कोई इस दुनिया में ‘विनोद’ खाकसार,
फिर भी हमने हँस–हँस जीने को ही जहर पिया है।


- बिनोद कुमार  

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