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Saturday 3 June 2017

गृहलक्ष्मी !!!

सारा घर उल्लासमय था | पूरी इमारत जगमगा रही थी | सारे बच्चे पटाखे-फुलझडियों में मस्त थे | गृहलक्ष्मी दौर-दौर कर लक्ष्मी-पूजा की तैयारी में जूती थी | उधर घर के कोने में स्थित  कमरे को कोई झाँकने तक नहीं आया था | शाम से कमरा अंधकार में डूबा था |

थोड़ी देर में ही गृहलक्ष्मीआयी और ‘स्विच ऑन’ किया | देखा – बिस्तर गीला पड़ा है | वह बडबडाने लआगी – ‘ न जाने किस जन्म में कौन-सा पाप किया था, जो आज यह सब भोज रही हूँ ?.... बुड्ढी मरती भी नहीं, अमृत पीकर आयी है |...........



और बडबडाती हुई कमरे से निकल गयी | उसे लक्ष्मी-पूजन की जल्दबाजी थी |


(कई पत्र-पत्रिकाओं में छपी ये लघुकथा पिताश्री की वेबसाइट http://www.geocities.ws/sahityavinod पर २००४ में प्रसारित की गयी)