सारा घर उल्लासमय था
| पूरी इमारत जगमगा रही थी | सारे बच्चे पटाखे-फुलझडियों में मस्त थे | गृहलक्ष्मी
दौर-दौर कर लक्ष्मी-पूजा की तैयारी में जूती थी | उधर घर के कोने में स्थित कमरे को कोई झाँकने तक नहीं आया था | शाम से
कमरा अंधकार में डूबा था |
थोड़ी देर में ही गृहलक्ष्मीआयी
और ‘स्विच ऑन’ किया | देखा – बिस्तर गीला पड़ा है | वह बडबडाने लआगी – ‘ न जाने किस
जन्म में कौन-सा पाप किया था, जो आज यह सब भोज रही हूँ ?.... बुड्ढी मरती भी नहीं,
अमृत पीकर आयी है |...........
और बडबडाती हुई कमरे
से निकल गयी | उसे लक्ष्मी-पूजन की जल्दबाजी थी |
(कई
पत्र-पत्रिकाओं में छपी ये लघुकथा पिताश्री की वेबसाइट http://www.geocities.ws/sahityavinod
पर २००४ में
प्रसारित की गयी)
No comments:
Post a Comment