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Thursday 6 February 2014

पूर्णिमा की रात

 
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देखा मैंने उस रात
सरोवर–तट पर
पारदर्र्शी दर्पण–सी
शुभ्र–शीतल जल में
चांद उतर आया था
कुमुदिनी की पंखुड़ियों के
कोमल स्पर्श से
अपने बदसूरत दाग मिटाने को चुपचाप ।

नीरव निर्जन प्रदेश में
मृदुहास लिये
चुपके से
जल विहार करते चाँद को
निर्वसन देखा था मैंने
शुभ्र ज्योत्स्नास्नात ।

रात के अंतिम पहर में
सुवासित कुंज की ओट से
चुपचाप जाते देखा–
मैंने सुन ली थी उसकी पदचाप ।



२४ दिसंबर २००३ को www.anubhuti-hindi.org पर प्रकाशित ।