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Tuesday 22 July 2014

प्रतिभा

 

विभागीय परीक्षा देने के बाद सबों ने उससे कहा था – ‘महेश, परीक्षा में अव्वल तो तुम्हें ही होना है |’

कुछ दिनों के बाद - निरीक्षक ने कहा था – ‘महेशजी, मुँह मीठा कराइए | चयन-सूची में आप सर्वप्रथम आये हैं |

वह बहुत खुश हुआ था | थोड़े दिनों के बाद जब चयन-सूची प्रसारित की गयी तो कहीं भी उसका नाम नहीं था | सभी ‘च' धातु-गुणधारी चयन कर लिये गये थे |

उस दिन वह बहुत दुःखी  हुआ था | निराशा में ही उसने विभागीय परीक्षा से सम्बंधित तमाम पुस्तकों और नोट्स को जला डाला था, ताकी फिर से भ्रमजाल में न आ सके | इसलिए आजकल अपनी प्रतिभा और डिग्रीयों को घर पर ही छोडकर साधारण मेट्रिक बनकर वह दफ्तर आया करता है - औरों की तरह | वह भूल जाना चाहता है कि वह डबल एम.ए., एल.एल.बी.  भी है |

 

(कई पत्र-पत्रिकाओं में छपी ये लघुकथा पिताश्री की वेबसाइट http://www.geocities.ws/sahityavinod पर २००४ में प्रसारित की गयी)

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