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Friday 11 May 2018

पर्यावरण

 
वह भागी-भागी पहाड़ों के पास गई | देखा पहाड़ों की हरियाली क्रशरों, बुलडोज़रों और विस्फोटकों के पास पड़ी दम तोड़ रही थी | वह भागी हुई विभिन्न मंत्रालयों में गई | किसी ने सीधे मुहँ बात तक नहीं की, क्योंकि उसके पास कोई सिफारिशी पत्र नहीं था |
बेचारी क्या करती, गाँव को लौट आयी, तो देखा- खतों की हरियाली बैंको के मियादी खातों में फल-फूल रही है और लोग बाग शहरों की ओर भाग रहें हैं | बेचारी थकी -हारी अपने भाग्य को कोसती चली आ रही थी | उसकी उदासी पर किसी ने उसे टोक दिया – “क्या हुआ तुझे रे पगली ……..?”
“चल हट नासपीटे ……. करमजले……… उत्सवधर्मी ……… सरकारी अनुदानधर्मी ………. तुमलोगों की तो बुद्धी ही हरवक्त सोती रहती है …………….
मुझे क्या ……………… मैं तो अब चली ………………….. तुमलोग अब तमाशा करो ……………….ओर तमाशा देखो…………………..|” 


फिर वो सात समंदर पार भाग गई ओर एक अज्ञात गुफा में बंद हो गई |


अब सारे विश्व में बहस छिड़ी है | हर देश में करोड़ों – अरबों क बजट - प्रावधान किया जा रहा है | सारे महारथी सर खपा रहें हैं | विश्व के तमाम प्रयोगशालाओं, शोध – संस्थाओं , मंत्रालयों में युद्ध स्तर पर खोज जारी हैं -
शुद्ध पर्यावरण की ……, शुद्ध पेयजल की …..|


- बिनोद कुमार