किरण फिसली - फिसली और थम गयी
पेड़ों के अक्षत - निस्तब्ध शाख पर
चुहल करने लगी
शाख से, हर पात से-
कभी इस पर
कभी उस पर
अस्ताचलगामी सूर्य ने पुकारा
’अरी ओ चली आओ'
तत्क्षण किरण ठिठकी
मुड़ी
सिमटी सिकुड़ी
पक्षियों के कलरव - गान सुनती
मृगछौने - सी कुलाचें भारती
अस्ताचल को सरपट लौट गयी |
(पिताश्री की ये कविता हिन्दीनेस्ट.कॉम पर ०९ अगस्त, २००३ को प्रकाशित हुई थी)
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