यायावर एक ट्रेवलर (YayavarEkTraveler.Com) से साभार |
शान्ति के पुजारी पुण्य देश से
हर बार उड़ती है
शान्ति कपोत
लिए अपनी चोंच में शांति – संदेश का पत्रक ।
और —
हर बार गंतव्य पर
पहुंच कर
क्रूर– दहकती सर्वभुक् युद्धाग्नि की
खूनी लपटों की लपेट में आ – आ कर
फड़फड़ा कर
बलि जाता है ।
और —
हर बार उसके जल – भुनकर
राख हो जाने के पूर्व
‘मिलिटरी हेडक्वाटर’ के ‘वारफेयर कंट्रोल रूम’ के
बस एक सर्तक संकेत पर
उसे बड़ी चतुराई से निकाल लिया जाता है
जो चन्द मिन्टों के बाद
रण – नीति – विशादों के सर्वग्रासी – सर्वनाशी पेटों में
क्रूर हास के साथ समा जाता है ।
और इधर
शान्ति–कपोत–प्रक्षेपक
शान्ति – पूजक देश
शान्ति–संदेश–वाहक कपोत का
बड़ी बेसब्री से इंतजार करता है :
जब अनायास उसकी निर्मम हत्या की खबर लगती है
मनहूसियत के साथ मातम मना लिया जाता है ।
युद्ध और शान्ति की
बस यही दुश्चक्र–नियति है
कि न तो युद्धवादी राष्ट्र से बाज आते हैं
न शान्तिवादी राष्ट शान्ति–प्रयास से ।
फिर भी –
हर बार यही लगता है कि
हिटलर और मुसोलिनी की औलाद
असंख्य – असंख्य रण–श्रेत्रों में जनम जाते हैं
रावण की तामस वृति
अपनी आंतों में खिंच – खिंच कर
लंबी – क्रूर और रहस्मयी हो जाती है
और ‘एण्टी – रावण’ राम बौना पड़ जाता है।
- बिनोद कुमार
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