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Friday 15 November 2013

आत्मकथ्य



 अपने इर्द ­गिर्द

अपने ­आप में

जो विसंगतियाँ देखता हूँ

वही अनुभूतियाँ देती हैं आवाज

कि लिखो..... ­लिखो.....

तब न चाहकर भी

निचुड़कर लिखता हूँ मैं

वही चीखते शब्द हैं

मेरी कविता..... केवल कविता..... ।


२४ दिसंबर २००३ को www.anubhuti-hindi.org पर प्रकाशित ।

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