अपने इर्द गिर्द
अपने आप में
जो विसंगतियाँ देखता हूँ
वही अनुभूतियाँ देती हैं आवाज
कि लिखो..... लिखो.....
तब न चाहकर भी
निचुड़कर लिखता हूँ मैं
वही चीखते शब्द हैं
मेरी कविता..... केवल कविता..... ।
निचुड़कर लिखता हूँ मैं
वही चीखते शब्द हैं
मेरी कविता..... केवल कविता..... ।
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